हिन्दी गे सेक्स स्टोरी – मेरी गाण्ड का उद्घाटन समारोह – २

इसी हिन्दी गे सेक्स स्टोरी का पहला भाग

मैंने ली, मेरा शरीर ढीला पड़ा और रजत ने पूरा का पूरा लण्ड मेरी गाण्ड में घुसेड़ दिया।
अब मेरा दर्द बेकाबू हो गया। मैं बिलबिला उठा।
‘रजत… हा आ आ… !!’

रजत ने अब अपना लौड़ा आगे-पीछे करना शुरू किया, मुझे लगा कि मेरी गाण्ड में से खून निकल रहा है।
‘रजत… रजत… देखो, कहीं खून तो नहीं निकल रहा है?!!’

‘चुप भोसड़ी का…!’ रजत ने फिर हड़का दिया- चुपचाप चुदवा, वर्ना गाण्ड फाड़ दूँगा।

‘नहीं रजत… बस करो दर्द हो रहा है।’ मैं गिड़गिड़ा रहा था।

‘अरे यार, अभी तो घुसा है।’ उसे अपना लौड़ा हिलाना जारी रखा।

‘लेकिन अहह… दर्द हो रहा है…अहह… यार !!’ मैंने तड़पते हुए जवाब दिया।

‘वो तो होगा ही, पहली बार करवा रहे हो। पांच मिनट रुक जाओ, दर्द नहीं होगा।’ रजत चोदने में जुटा हुआ था।

मेरा दर्द बयान के बाहर हो चुका था, मेरा मुँह दर्द के मारे खुला हुआ था और उसमें से हर प्रकार की आवाज़ें निकल रहीं थी।
मैंने रजत की तरफ गौर किया : वो मेरे ऊपर झुका, मेरी टांगें थामे, अपनी कमर हिला रहा था और बड़ी उत्सुकता से मेरा तड़पना देख रहा था।
शायद उसे मेरे चिल्लाने और छटपटाने में मज़ा आ रहा होगा।

अब मैंने हाथ खड़े कर दिए। अब मुझसे और नहीं हो सकता था।
‘रजत… रजत… रुक जाओ… अह्ह्ह… निकाल लो। मैं अब नहीं करवाऊँगा। बहुत दर्द हो रहा है !!!’ मैंने उसे साफ़ मना किया।

लेकिन रजत के कान पर जूँ नहीं रेंगी, मेरी बात की उपेक्षा करके उसी तरह कमर हिलाए जा रहा था।

‘रजत बस करो।’ मैं चीखा, अब मुझे गुस्सा आ गया था।

लेकिन रजत बहरा बन गया था, कमीना!

उसकी कमर का एक-एक थपेड़ा मेरी बर्दाश्त के बाहर हो चुका था। मैं उसके लण्ड के आगे-पीछे होने के हिसाब से आहें भर रहा था।जैसे उसका लण्ड आगे घुसता मेरे खुले हुए मुँह से ‘आह’ की आवाज़ निकलती। जैसे ही उसका लण्ड बाहर निकलता, मेरे मुँह से ‘उह’ की आवाज़ निकलती।

‘आह.. उह.. आह… उह्ह… आह…!!!’

रजत को बहुत मज़ा आ रहा था, वो मेरा छटपटाना देख कर मुस्कुरा रहा था, बहुत हरामीपने की मुस्कान थी। साला एक नम्बर का कमीना था।

‘रजत तुमने प्रोमिस किया था कि अगर मुझे दर्द हुआ तो तुम नहीं करोगे।’

‘अच्छा।’

‘अरे, तो हटो… छोड़ो मुझे… आह्ह… !!’ रजत ने ज़ोर से धक्का मारा। मैं उसका वार झेल नहीं पाया और मेरा धड़ पलंग पर उछल गया। कमर और टांगों को तो उसने दबोचा हुआ था।

मैं जैसे ही उछला, रजत ने झुक कर ज़ोरों से मेरे निचले होंटों को काटा, मेरी फिर चीख निकल गई- आअह्ह्ह…!

रजत को और मज़ा आया, अब उसने फुल स्पीड में चुदाई शुरू कर दी।

‘ईएह्ह…!!! रजत…!! छोड़ दो प्लीज़…!!’ मैं दर्द के मारे चीखा।

‘छोड़ दूँ या चोद दूँ?’

‘नहीं रजत… प्लीज़… उहहह ब..बस क.. करो !’ मैंने उसकी मिन्नत की।

‘रुक जाओ जानू… थोड़ी देर और, फिर छोड़ दूंगा।’ उसने एक ‘रेपिस्ट’ के अंदाज़ में कहा।

‘नहीं, नहीं… बस करो… छोड़ दो।’

लेकिन वो चोदे जा रहा था, मेरे तड़पने, गिड़गिड़ाने और हाथ पाँव जोड़ने का उसपर कोई असर नहीं हुआ। फिर आखिरकार मुझे कोशिश करनी पड़ी, मैं अपने आपको जबरन छुड़ाने लगा लेकिन वो भी बेकार साबित हुई।

रजत, जैसा मैंने आपको बताया, बहुत तगड़ा लड़का था और मैं दुबला-पतला, मैंने जैसे उठने कोशिश की उसने मेरी बाहें जोर से जकड़ ली और मुझे बिस्तर पर दबा दिया, मेरी टांगें और कमर उसकी चपेट में पहले से थे।

‘रजत, यह क्या बदतमीज़ी है? छोड़ो मुझे !!’ अब मैंने उसे डांटा।
लेकिन वो बहरा बना हुआ था।

अब मैं फिर से उसकी चिरौरी करने लगा- रजत… मेरे राजा… छोड़ दो !

‘छोड़ दूँ कि चोद दूँ?’ उसकी आवाज़ में हरामीपना कूट कूट कर भरा था।

‘नहीं… नहीं… छोड़ दो न…’

‘साले… दो साल से मैं इंतज़ार कर रहा हूँ तुम्हारी गाण्ड मारने का, ज़रा जी भर के कर लेने दो… तुम्हारे जैसे चिकने लौंडे को कोई छोड़ेगा क्या?’

अब वो बोले चला जा रहा था और चोदे चला जा रहा था, मैं मन ही मन अपने आप को कोस रहा था, देखा जाये तो गलती मेरी ही थी, मुझे इस दैत्य को अपने ऊपर सवार ही नहीं करना था।

‘मज़ा आ रहा है या नहीं मुन्ना?’ उसने मुझे छेड़ते हुए कहा।

मैंने ‘न’ में सर झटक दिया।

‘हे हे हे… लेकिन मुझे बहुत मज़ा आ रहा है तुम्हें चोद के’

‘कमीना कहीं का…’

मैं पहले की तरह मुँह खोल कर ‘आह-उह्ह’ कर रहा था।

रजत मेरे ऊपर झुका, उसका सर मेरे सर के ऊपर आ गया।

उसने मेरे खुले मुँह में थूक दिया, उसका थूक सीधे मेरे हलक में गिरा।

‘रजत… अह्ह्ह… बस करो उह्ह्ह… आह्ह… मैं… मैं मर जाउँगा… !!’

‘हा हा हा…. तुम्हारी पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में लिखा होगा ‘गाण्ड मरवाने से मौत हुई!’

उस साले हरामी को मेरी दुर्दशा देखने में बहुत मज़ा आ रहा था।

‘चुतिया साला… गाण्ड मरवाने से कोई मरा है आज तक? इतने प्यार से धीरे-धीरे तुम्हें चोद रहा हूँ अपनी जान की तरह और तुम साले ड्रामा कर रहे हो !!’

उसका बेरहम लौड़ा मेरी गाण्ड को रौंदने में लगा हुआ था।

‘मैं अब इसके बाद तुमसे कभी नहीं मिलूँगा… ईह्ह्ह !!’

‘हे हे… मत मिलना… इसीलिए तो तुम्हारी गाण्ड को जी भर के चोद रहा हूँ, तुम फिर कभी मिलो न मिलो… आज जी भर के चोद लेने दो।’

बोलते-बोलते वो फिर झुका।

मुझे लगा यह फिर मेरे मुंह में थूकेगा, मैंने अपना सर फेर लिया। उसने मेरे सर को ठोड़ी से पकड़ा और ज़ोरों से मेरे होटों को काटा।

‘म्मम्म…. नहीं… !!’ बड़ी मुश्किल से मैंने उसको दूर किया। पता नहीं शायद मेरे होटों से खून निकल रहा होगा- कम से कम काटा-पीटी तो मत करो… तुम आदमी हो या राक्षस?’ मैंने दर्द में कराहते हुए कहा।

‘मैं तो तुम्हारी पप्पी ले रहा था। चुदते हुए और भी प्यारे लगते हो जानू !’

‘और तुम चोदते हुए पूरे राक्षस लगते हो।’

मैं बिन पानी की मछली की तरह तड़प रहा था और वो कसाई की तरह मज़े ले-लेकर मेरी गाण्ड में अपना हरामी लण्ड हिलाए चला जा रहा था।

पता नहीं वो हरामी मुझे कितनी देर तक यातना देता रहा, फिर वो रुक गया और अपने लौड़े को निकाल लिया।

मेरी जान में जान आई, मैं उठने लगा तो उसने फिर मुझे दबोच लिया और मेरी छाती पर चढ़ बैठा, उसने झट से अपने लौड़े से कन्डोम उतार फेंका।

मैं ताड़ गया था कि अब यह क्या करने वाला है।

रजत सड़का मारने लगा। अगले ही पल उसके लण्ड ने मेरे चेहरे पर गाढ़े वीर्य की धार मारनी चालू कर दी। उसके वीर्य से मेरा चेहरा और गला सराबोर हो गया। एक धार तो मेरे मुँह में भी चली गई।

पूरी तरह झड़ने के बाद बोला- मैंने वादा किया था न कि मैं तुम्हें छोड़ दूंगा, लो छोड़ दिया।
और मेरे ऊपर से हट गया।

मैंने आव देखा न ताव, सीधे बाथरूम में भागा। वो भी पीछे से घुस आया। मैं सिंक पर झुक चेहरा धो रहा था कि उसने मुझे पीछे से दबोच लिया।

‘जानू बहुत मन था तुम्हें ठोकने का… लेकिन तुम मानते ही नहीं, इसीलिए आज मुझे ज़बरदस्ती करना पड़ा।’
मैंने कोइ जवाब नहीं दिया।

‘क्या मैं तुम्हारे ऊपर मूत दूँ?’ उसने खींसे निपोरते हुए मुझसे पूछा।

साला बड़ा बेशरम था।
अब तो हद हो गई थी। मैं बाथरूम से भागा, कहीं यहाँ भी यह ज़बरदस्ती अपने पेशाब में मुझे नहला न दे।
‘अरे अरे… कहाँ भाग रहे हो?’
‘मैं जा रहा हूँ। अब एक मिनट नहीं रुकूँगा।’ मैं जल्दी-जल्दी कपड़े पहन कर वहाँ से भागने की तैयारी करने लगा।
इस बलात्कारी राक्षस का कोइ भरोसा नहीं।

‘अरे… जल्दी भी क्या है।’ वो अभी भी मुस्कुरा रहा था- जानू, तुम तो बुरा मान गए। मैं तुम्हारा पति हूँ… मैं नहीं करूँगा तुम्हारे साथ तो और कौन करेगा?

मैंने कोइ जवाब नहीं दिया। अब तक मैं कपड़े पहन चुका था, बस जूते पहन कर वहाँ से सर पर रख कर भागा।
रंगबाज़

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