Desi Gay Sex Story: दिल्ली की नौकरी : 4

Desi Gay Sex Story: दिल्ली की नौकरी : 4

Desi Gay Sex Story: हेलो दोस्तों, जैसा के आप सब जानते ही हो के मेरा नाम आशु है, , में हरियाणा के यमुना नगर का रहने वाला हू….!! आप सबने पिछली कहानी दिल्ली की नौकरी: 3 में पढ़ा के कैसे विनोद और प्रदीप के वाकये ने मुझे अपनी प्यास शांत करने का मौका बनाने पर मज़बूर कर दिया था, और फिर विनोद के लिए मेरी प्यास जो जाग उठी थी उसे बुझाने के लिए मैंने उसे तैयार भी किया और उसने भी पूरा साथ देना शुरू कर दिया था… अब आगे की कहानी पढ़िए..

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मेरा तड़पना-छटपटाना उसके मज़े को दोगुना कर रहा था। वो करीब 15 मिनट तक मेरी गांड थामे उसे चाटता रहा। फिर उसका मन शायद अब लंड चुसवाने का करने लगा। …

दोस्तों, प्रदीप के साथ मेरा अनुभव थोड़ा दर्द भरा ज़रूर रहा था पर वो एक नरम दिल लड़का था, फिर विनोद के साथ मुझे इतना वक़्त हो गया था, मुझे लगा के वो भी मेरे साथ कुछ ऐसे सेक्स करेगा के मुझे भी उसके प्यार का अहसास हो और मैं उस पल को हमेशा याद रखूं. लेकिन उसके बाद जो विनोद ने मेरे साथ किया वो मेरी सोच से बिलकुल अलग था..

उसने मुझे पीठ के बल लिटा दिया। उसने मुझे ध्यान से देखा और बोला ” आशु ऐसा लग रहा है जैसे नशा कर के आये हो- उसने बताया के मेरी आँखें बिल्कुल लाल हो चुकी थी, और उनमें पानी आ गया था। शायद मेरे चेहरे से हवस टपक रही थी। विनोद ने अपने सारे कपड़े पहले ही उतार दिए थे, सिवाय चड्डी के। फिर वो मेरी छाती के ऊपर घुटनों के बल खड़ा हो गया और अपना कच्छा सरका दिया। उसका साढ़े सात इंच का लौड़ा मेरे चेहरे पर तन गया। मैं आँखें फाड़ कर उसके लंड को देख रहा था।

“ऐसे क्या देख रहे हो..? तुम पहले भी तो कर चुके हो ये सब प्रदीप के साथ ।”

“हाँ, उसका वो तुम जैसा नहीं है,… तुम तो जैसे आज जैसे मेरा असली इम्तेहान ले रहे हो , या अपने अहसान का बदला?” मैंने उसके लोडे को घूरते हुए कहा.. मैं उस से जाने क्यों आँख नहीं मिला पा रहा था

“बस हो गया जान, तुम्हारे लिए ! अब इसे अपने मुँह में लेकर प्यार से चूसो। मुझे मज़ा आना चाहिए।”

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मैं उचका और पलंग के सिरहाने का सहारा लेकर बैठ गया और उसके लौड़े के सुपारे को अपने मुँह में ले लिया। मेरे मुँह की मुलायम गर्मी पाकर विनोद का लंड और सख्त हो गया, और उसके मुँह से हल्की सी आह निकल गई, ” अहह..हह..!”

मैं उसका मेरा लंड चूसने लगा। विनोद उसी तरह घुटनों के बल खड़ा मुझे अपना लंड चूसते हुए देख रहा था। हालांकि मैं उसका लंड ढंग से नहीं चूस रहा था- या तो इतने बड़े लंड की मुझे आदत नहीं थी और फिर मुझे चूसना भी नहीं आता था। लंड चूसना भी एक कला होती है। लेकिन फिर भी उसने अपना लंड मेरे मुंह में दिया हुआ था। इतने सुन्दर चिकने लड़के को अपना लंड चुसवाते हुए और हवस के मज़े से आँखे बंद किये हुए मैं देखना चाहता था।

मेरी जीभ धीरे धीरे उसके लंड के सुपाड़े को सहला रही थी। वो बीच बीच में कभी मेरे बाल या कंधे सहला देता था। फिर उसके मन में न जाने क्या आया, उसने अपना लंड हटा लिया और मुझे गले लगा कर स्मूच करने लगा। उसने मेरे होटों को ढंग से देर तक चूसा जैसे कोई मीठा फल चूस रहा हो ।

अब विनोद का मन कर रहा था मेरी गोरी गांड की सवारी करने का। उसने अपने लंड पर कंडोम चढ़ाया और अपनी जींस की जेब से लिग्नोकेन जेल की ट्यूब निकली। कुछ जेल अपने लौड़े पर मली और फिर ट्यूब मुझे पकड़ा दी।

“ये क्या है?”

“अबे..? ये लिग्नोकेन जेल है। इसको अपनी गांड के अन्दर लगा लो। फिर सब सुन्न और ढीला हो जायेगा, मेरा लौड़ा आराम से ले लोगे !” विनोद ने समझाया।

हालांकि प्रदीप ने ऐसा कुछ नहीं दिया था । लेकिन शायद उसने अपने लंड पर लगाया हो उस वक़्त और मुझे पता न चला हो… मैं इस सब में नया ही तो था.. और प्रदीप पहला बंदा था जिसने मेरी गांड मैं लंड डाला था … मैं अभी सोच ही रहा था के उसने मेरी गांड में जेल लगाना शुरू करदिया,एक , फिर दो, फिर तीन उँगलियों के साथ..

और फिर से मुझे पीठ के बल लिटा दिया, वो मेरे सामने घुटनों के बल खड़ा हो गया और मेरे दोनों पैरों को अपने कंधों पर रख लिया। वो बोला ये मेरा मन पसंद पोज़ है.. मुझे लगा के प्रदीप की तरह अपनी ऊपर बिठायेगा लेकिन नहीं… वो बोला.. इस पोज़ में फ़ायदा ये कि आप अपने साथी को चुदता हुआ देख सकते हैं, उसके होटों को चूस सकते हैं।

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मैं विनोद की ओर ऐसे देख रहा था जैसे कोइ मरीज़ डॉक्टर को देखता है, जब उसे इंजेक्शन लगाया जाने वाला होता है। उसने एक हाथ से अपना टाईट खड़ा फुफकारता हुआ लौड़ा पकड़ा और दूसरे हाथ से मेरी गाण्ड फैलाई, फिर अपने लंड के सुपाड़े को उसकी गांड के मुहाने पर रख कर एक धक्का मारा…

“उह्ह्ह…!!” मेरी की आह निकल गई। उसके लंड का सुपाड़ा अन्दर घुस चुका था। उसे शायद मालूम था की मैं छटपटाउंगा और अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करूँगा इसीलिए उसने वक़्त बर्बाद नहीं किया और अपना लंड पूरा का पूरा मेरी गाण्ड में पेल दिया.

“अहह.. आआह्ह.. हहा.. आहह…!!” मैं दर्द के मारे उछल पड़ा। उसने मेरी टांगें छोड़ कर मेरे कन्धों से कस कर पकड़ लिया। लेकिन उसका लंड मेरी गांड में पूरा घुस चूका था। शायद प्रदीप ने मेरी गांड इतनी खोल दी थी के में इस दर्द को लगभग बर्दाश्त कर ही गया लेकिन फिर भी दर्द बहुत ज़्यादा था ।

मेरे चेहरे पर बेचारगी और दर्द झलक रहा था। मैं ऐसे तड़प रहा था जैसे कोइ रोड एक्सिडेंट की चपेट में आकर तड़पता है, सिर्फ मुँह से आवाजें निकल रही थीं, अपना सर झटक रहा था और बिस्तर पर उछल रहा था, मुंह से कुछ बोल नहीं पा रहा था।

“ऊह्हू… आह्ह हा हा…!”

“आह्ह.. आःह्ह.. हहा..!”

विनोद एक पल यूँ ही मेरा छटपटाना-तड़पना देखता रहा। उसे शायद बहुत मज़ा आ रहा था। फिर वो मेरी टांगें फैला कर नीचे झुका और मेरे सर को पकड़ कर मेरे होंट चूसने लगा। मैंने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए, और अपने होंट चुसवाते-चुसवाते हुए सिस्कारियाँ लेने लगा। मेरे मुँह से उसका मुँह बंद हो गया था।

“हम्म्म्म.. मम्म…!!” वो दो मिनट मेरे होंठ ऐसे चूसता रहा जैसे कोई रसीला फल मिल गया हो खाने को।

फिर विनोद ने मेरी गाण्ड की चुदाई करनी शुरू की।

वो फिर अपने घुटनों पर सीधा खड़ा हो गया और मेरी टांगों को अपने कन्धों पर रख लिया। उसने धीरे धीरे अपना लौड़ा हिलाना शुरू किया, अगर तेज़ी से हिलाता तो मैं शायद और तड़पता, शायद दर्द के मारे ज़ोर से चीखता भी।

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मेरा तड़पना और उसका चोदना उसी तरह जारी रहा। उसके लौड़े को बहुत मज़ा आ रहा था मेरी मुलायम गांड में घुस कर। कुछ देर तक विनोद उसी तरह धीरे धीरे चोदता रहा, फिर उसने स्पीड बढ़ा दी, उसे और मज़ा लेना था।

“आए…ए.. आह्ह्ह…!!!”

“नहीं.. आह्ह… धीरे… अह्हाआ !!” इतने समय बाद मेरे मुँह से ये दो शब्द निकल पाए थे।

उसने मेरा रिरियाना नज़रंदाज़ कर दिया, “चोद लेने दो आशु.. मेरा तुम्हे प्रदीप के पास भेजने का भी मन नहीं था.. में तो तुम्हे बस अपना बना लेना चाहता था लेकिन तुम्हारी भी मजबूरी थी .. और मेरे पास भी कोई और चारा नहीं था तुम्हे दिल्ली रोकने का..” उसने मुझे जवाब दिया और उसी तरह अपना लंड हिला हिला कर चोदता रहा।

मैं समझ गया के वो अब मुझे नहीं छोड़ने वाला था।

मैंने अब हटने की कोशिश की। कोइ भी लड़का जो पहली बार इतने बड़े लंड से चुदेगा, उसे दर्द तो होगा ही। मैंने अपनी टांगें हटा कर करवट बदलने की कोशिश की, जिससे कि मेरी गाण्ड अलग हो जाये। लेकिन विनोद इसके लिए तैयार था। उसने फिर से मेरी टांगें फैलाईं और मेरे ऊपर झुक गया और मेरे कन्धों को पकड़ लिया। अब मैं हिल भी नहीं सकता था।

“आशु मेरी जान.. आज चुदवा लो प्लीज़…” कहते हुए उसने मेरे गाल खाने शुरू किये। इधर उसने फुल स्पीड में अपनी कमर हिलाना जारी रखा। उसका हरामी मुस्टंडा लंड ज़ोर-ज़ोर से मेरी की गाण्ड को चोद रहा था। मेरे के गाल चूसते चूसते अब वो मेरे होंठों पर आ गया था।

मैं उसी तरह सिस्कारियाँ लेते, अपने होंठ चुसवाते, विनोद की कमर थामे चुदवा रहा था। मेरे नरम-नरम होंठ चूसकर उसकी शायद कामोत्तेजना और बढ़ गई। वो कुछ जल्दी चरम सीमा पर पर पहुँच गया, शायद मेरी किस्मत अच्छी थी।

विनोद ने मुझे कन्धों से भींच कर अपनी बाँहों में समेट लिया और मेरे होंठों का रस पीते, तेज़ी से मेरी गांड में लंड हिलाते हुए झड़ गया। वो फुदकते हुए मेरी गांड में झड़ा, जिससे मुझे और भी दर्द हुआ। लेकिन यह मेरा आखिरी तड़पना था।

जब विनोद कायदे से झड़ गया, उसने अपना लंड बाहर निकाला। मैंने चैन की सांस ली। विनोद उसी अवस्था में मेरे ऊपर लेट गया।

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“मज़ा आ गया आशु.. आज मेरी तमन्ना पूरी हो गई।” विनोद ने मेरे कान में लेटे लेटे हल्के से कहा।

“हाँ, तुम्हे तो मज़ा आएगा ही ! मैं तो मरने ही वाला था।” मैंने उसे ताना मारते हुए कहा।

आज इतना दर्द सहने के बाद भी एक अजीब सी संतुष्टि का अनुभव हो रहा था, लेकिन ये इस तराने का आखिरी पड़ाव नहीं था.. कहानी जारी रहेगी दोस्तों!!

अभी मैं हरियाणा के यमुना नगर जिले में हूं. आपके पत्रों का इंतज़ार मुझे [email protected] पर रहेगा

आपका आशु

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