हिंदी समलैंगिक कहानी: ऑफिस की वो रात: 1

हिंदी समलैंगिक कहानी: ऑफिस की वो रात: 1

हिंदी समलैंगिक कहानी: हेलो दोस्तों, जैसा के आप सब जानते ही हो के मेरा नाम आशु है, , में हरियाणा के यमुना नगर का रहने वाला हू!

अभी तक आपने मेरे दिल्ली की नौकरी से जुड़े अनुभव पढ़े… आज में आपको बताता हूं के चंडीगढ़ से ट्रेनिंग करने के बाद मुझे ये शहर बहुत पसंद आया.. और उस पर ये की चंडीगढ़ मेरे शहर से ज़्यादा दूर नहीं था … काफी जुगाड़ लगाने के बाद आखिर मेरा तबादला चंडीगाह के पास जीरकपुर वाले ऑफिस में हो गया !! लेकिन मुश्किल ये की मेरे सभी दोस्त दिल्ली में ही छूट गए… और में काफी अकेला महसूस करने लगा था… न कोई विनोद जैसा भरोसे के लायक… और न ही प्यार करने वाला

खैर, फिर भी मैं यहाँ आकर वह बहुत उत्साहित था- माहौल, बढ़िया फर्नीचर, माडर्न साज सज्जा और उसके जैसे स्मार्ट और हैंडसम लड़के। वैसे भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के दफ़्तरों में ऐसा माहौल होता ही है। मैंने अभी से लड़कों को नज़रों से टटोलना शुरू कर दिया था- किसका लंड बड़ा होगा, वगैरह वगैरह !

एक दिन जब मेरी शिफ्ट ख़त्म हो गई तभी मेरी नज़र रजत नाम के एक ट्रान्सपोर्ट-सुपरवाइज़र पर पड़ी। रजत का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उसे नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता था- 6 फुट 4 इंच लम्बाई, चौड़ी छाती, हट्टा-कट्टा, जिम में ढला शरीर ! उसे तो किसी नाईट क्लब में बाउंसर होना चाहिए था। रजत ठेठ हरियाणा का जाट था, वैसे भी जाट तगड़े और बांके होते हैं।

एक मिनट को तो मैं उसे देख कर चौंक गया लेकिन उसके आस पास काफी लोग थे. मैंने फ़ौरन अपना ध्यान रजत से हटा लिया, कहीं लोग मुझे रजत को घूरते देख न लें।

उस दिन मुझे नींद नहीं आई, अब मैं ऑफिस में रजत को लाइन मारने के बहाने ढूंढता था, कभी किसी की शिकायत करने पहुँच जाता, कभी उसके ऑफिस की ज़िरोक्स मशीन इस्तेमाल करने चला जाता।

जब भी मैं और रजत आमने सामने होते, वो हंस हंस कर बातें करता, उसके बातों से अंदाज़ा लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं था के वो भी क्या चाहता है

फिर एक दिन उसने बातों में मुझे बताया के जबसे उसने अपने मोहल्ले में ब्लू फिल्म देखने के बाद अपने दोस्त के छोटे भाई की गांड मारी थी, उसे लड़के बहुत अच्छे लगने लगे थे लेकिन आज तक उसकी हिम्मत नहीं हुई कि ऑफिस में किसी तरफ बढ़े।

इसी तरह रजत और मैं पास आते गए, कुछ समय बाद मेरी ट्रेनिंग ख़त्म हुई और टीम में आ गया। रोज़ पार्किंग एरिया में आने के समय, जब सब घर जाने के लिए कैब में बैठ रहे होते, रजत और मैं एक दूसरे से गले मिलते, इसी बहाने दोनों एक दूसरे से लिपट जाते थे, एक दूसरे के शरीर को छू लेते थे।

एक बार मैं एक लम्बी कॉल पर फंस गया, एक हरामजादा अमरीकी बवाल मचा रहा था, मेरी शिफ्ट भी खत्म हो गई लेकिन मुझे रुके रहना पड़ा उस बेवकूफ फिरंगी का मसला सुलझाने के लिए।

लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि आज मेरी मुराद पूरी होने वाली है। मेरी शिफ्ट की सारी गाड़ियाँ आधे घंटे पहले जा चुकी थी, रात के तीन बजे मुझे कोई बस-ऑटो नहीं ले जाने वाला था। मुझे रजत के दफ़्तर में जाने का एक और बहाना मिल गया ! मैं ट्रान्सपोर्ट ऑफिस में पहुँचा तो देखा कि रजत अपनी डेस्क पर था। वो मन ही मन मुस्काया।

“हाय रजत ! मैं कॉल में फंस गया था, अपनी कैब से नहीं जा पाया. अभी कोई गाड़ी मिल सकती है?” मैंने रजत से अपनी समस्या बताई।

रजत मुस्कुराया और अपने हरियाणवी लहजे में बोला- कोई बात नहीं जी… अभी देखते हैं।

उसने किसी से फ़ोन पर बात की और मेरे को लेकर पार्किंग एरिया में आ गया। वहाँ पर पूरा सन्नाटा था।

रजत बोला- मेरी अभी एक कैब वाले से बात हुई है, वो तुम्हें ले जायेगा, बस थोड़ी देर इन्तजार करना पड़ेगा।

“कोई बात नहीं… कम से कम घर तो पहुँच जाऊँगा।” मैं खुश होकर बोला।

रजत के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कराहट दौड़ गई- और सुनाओ जी, आपकी कॉलिंग-शौलिंग कैसी चल रही है?” बस चल रही है, किसी तरह से ! उकता गया हूँ इन चूतिये अंग्रेजों से !” मेरी गाड़ी आने में समय था। दोनों पार्किंग एरिया में बातें करते, साथ-साथ टहलते रहे।

बातों-बातों में रजत ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रख लिया, मेरे मन लड्डू फूटने लगे, मैं रजत से और सट कर चलने लगा, दोनों समझ गए कि उनको एक दूसरे से क्या चाहिए लेकिन हम खुले पार्किंग एरिया में कुछ नहीं कर सकते थे।

तभी रजत के मोबाईल फोन की घंटी बजी, दूसरी तरफ कैब का ड्राईवर था, अभी उसे थोड़ी और देर लगेगी और वो सामने साइबर बिल्डिंग में आएगा।

“यार आशु.. अभी कैब वाले को थोड़ी देर और लगेगी और वो सड़क के उस पार सायबर टॉवर के बेसमेंट में आएगा।” रजत ने मुझे बताया।

“कोई बात नहीं !” आशु को रजत के साथ थोड़ा और समय मिल जायेगा।

हम दोनों सड़क पार करके सायबर बिल्डिंग पहुँच गए और बेसमेंट लेवल-2 में जाने के लिए सीढ़ियाँ उतरने लगे। उस विशाल बेसमेंट में भी सन्नाटा था, सिर्फ चार-पांच खाली सूमो-क्वालिस के अलावा वहाँ कुछ नहीं था। दोनों एक कोने में खड़े हो गए। दो पल की शांति के बाद रजत ने पूछा- और आशु … तेरी कोइ गर्लफ्रेंड नहीं है?

मैंने खींसे निपोरी और बोला- नहीं !

“क्यूँ? इतने स्मार्ट हो… कोइ तो होगी?” रजत ने चुटकी ली।

“हैंडसम और स्मार्ट तो तुम भी हो… इस हिसाब से तो तुम्हारी तीन चार होनी चाहिए, क्यों?” मैंने जवाब दिया।

रजत मुस्कुराया और बोला- मेरी तो एक भी नहीं है।

रजत ने एक बार फिर से मेरे गले में बांह डाल दी, मैं फिर से रजत से सट गया।

थोड़ी देर तक दोनों इधर उधर की बातें करते रहे, रजत ने फिर सवाल किया.. “कभी किसी लड़की का काम लगाया है?”

“नहीं.. अभी तो कहाँ यार…” मैंने हंसते हुए जवाब दिया।

“हाँ साले… इतना चिकना जवान लौंडा हो गया है, दिल्ली में इतना टाइम रहा और मेरे से मज़ाक कर रहा है…?” इतना कहकर रजत ने आशु के चूतड़ पर चिकोटी कट ली।

“अरे.. ये क्या कर रहे हो..!!” मैं चौंका और उसने रजत का हाथ जो मेरी गांड पर था, पकड़ लिया।

हाथ पकड़ तो लिया, मगर छोड़ा नहीं ! रजत ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया, दोनों के लंड खड़े हो गए। रजतको बहुत समय हो गया चोदे हुए और मेरी गांड से सीटी बज रही थी।

Read the hot and steamy hindi gay sex story of a horny and wild desi gay guy’s another experience at the office with a colleague!

अभी तक दोनों एक दूसरे से सटे एक सूमो के पीछे खड़े हुए थे, अब दोनों आमने-सामने खड़े हो गए और एक दूसरे की आँखों में आँखें डालकर देखने लगे। अब दोनों से रहा नहीं जा रहा था।

“इधर आ !” रजत बोला और मुझे गले से लगा कर मुलायम मुलायम होंठ को अपने होटों में दबा लिया।

आगे की कहानी यहां पढ़ें।

अभी मैं हरियाणा के यमुना नगर जिले में हूं. आपके पत्रों का इंतज़ार मुझे [email protected] पर रहेगा

आपका आशु

Comments