Hindi Gandu sex kahani – अब तो मेरी रोज़ गांड बजती है

Hindi Gandu sex kahani – अब तो मेरी रोज़ गांड बजती है

आपका प्यारा सा सनी गांडू
प्रणाम इंडियन गे सेक्स डॉट कॉम के सभी दोस्तो को.
दोस्तो, कैसे हो सब…!
मैं भला चंगा और आजकल खुश हूँ खिला-खिला रहता हूँ, क्यूंकि अब तो मानो मैं किसी की बीवी बन चुका हूँ और पति की तरह मुझे रोज लंड मिलता है।
मैंने जैसे बताया था कि मैंने अब एक प्राइवेट मार्केटिंग लाइन में जालंधर में जॉब ढूंढ ली है और वहीं एक कमरा किराए पर लेकर रहता हूँ। जहाँ मैं रहता हूँ, वो एरिया फोकल पॉइंट के बेहद करीब है।
वहाँ घर बना कर किराए पर देने का लोगों का बिजनेस बन चुका है। मैंने अन्तर्वासना पर जिक्र भी किया है कि वहाँ कैसे रहते हैं। मुझे कुछ दिनों में ही तगड़ा लंड मिल गया था।
जहाँ मैं रोज़ रात खाना खाने जाता हूँ, वहीं पर मेरी उस लंड से मुलाक़ात हुई और वो खेला-खाया था।
उसने बेहद जल्दी मेरी हरकत चाल चलन से भाँप लिया था कि मैं चिकना हूँ और मुझे अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए उसने हँसी-मज़ाक में मेरी गांड को सहलाया, दबाया था।
जब वो ऐसी हरकत करता, मैं भी गांड पीछे धकेल देता था और फिर एक रात उसने मुझे चोद ही लिया।
उसका बड़ा लंड लेकर खुश था कि यहाँ भी प्यास बुझाने के लिए जल्दी लंड मिल गया था।
उसके बाद शाम को वक़्त निकाल कर मैं सैर करने पार्क जाता था, वहाँ मुझे दो सेवा-मुक्त हुए उम्र-दराज फौजी मिल गए।
वो दोनों भी अकेले थे। उनके परिवार विदेशों में रहते थे। वो भी घर किराए पर देते थे, उनमें से एक का पोर्शन जैसे ही खाली हुआ, मैंने शिफ्ट कर लिया। वो अक्सर मेरी गांड मारते थे।
मैं भी उनके लुल्ले चूस-चूस कर उनको मजे देता था और बदले में मेरी गांड का ढोल बजाते थे।
लेकिन मैं सनी हूँ, मुझे नए-नए लंड हासिल करने का शौक है। मैं इसी लिए बिना कंडोम किसी को गांड नहीं देता।
मैं आज सबको अपनी अन्दर की एक सच्चाई बता देना चाहता हूँ, कि क्यूँ मैं इतने लंड लेना चाहता हूँ?
यह कुदरत की देन है कि मुझे जो जिस्म मिला, वो बेहद नाज़ुक था बचपन में भी चिकना था, बिल्कुल गोलू-मोलू था।
मैं सोचता हूँ कि अगर मैं लड़की होती, तो चालू बनती, कई आशिक बनाती, स्कूल कॉलेज में बदनाम होती और जब औरत बनती, तो गैर मर्दों से चुदवाती मतलब फुल करेक्टर-लैस होती।
लेकिन अपने इसी सोच को पूरा करने के लिए मैं अपने ख्याली किरदारों को सोच कर मजे लेना चाहता हूँ।
मैं जिस कंपनी में था, वहीं कांता प्रसाद नाम का एक बंदा भी जॉब करने लगा। वो मूल रूप मद्रासी है लेकिन उसका घर नॉएडा में है। वहाँ की ब्रांच से प्रमोट हुआ था।
मैं अकेला रहता था। मैं उस से काफी घुल-मिल सा गया था। उसकी उम्र अड़तीस से चालीस के बीच होगी।
उसने वहीं रूम रेंट पर लिया, जहाँ मैं पहले रहता था। क्यूंकि मैं वहाँ से फौजी अंकल के घर शिफ्ट हो गया था। वो ज्यादा दूर नहीं था। उसने भी खाना उसी ढाबे से खाना चालू किया।
वो ढाबा है ही प्रसिद्ध।


वो कभी-कभी घर से ढाबे के लिए निकलता तो रास्ते में मेरे पास आता। हम इकठ्ठे ही जाते।
एक शाम अंकल फुल मूड में थे, उन्होनें दारु खींच रखी थी, किसी शादी से हो कर आए थे। वहाँ डांसर लड़किओं को देख-देख उनका लंड फाडू हुआ था, मुझे कमरे में पकड़ लिया।
देखते ही देखते हम दोनों नंगे होकर खेलने लग गए।
अंकल के सर पर भारी हवस चढ़ रही थी, इसलिए उन्होंने मुझे पागलों की तरह चोदा, लेकिन मुझे अचानक से हुए वार से बहुत मजा आया।
मुझे इस तरह चुदना बहुत पसंद है।
मतलब अगर मौका मिले तो एकदम से या ऐसी जगह पर जहाँ जगह कम हो और वहीं छुप कर एकदम से किसी के लंड को चूसना। मतलब कम जगह पर जुगाड़ से लंड गांड में डलवाना।
अंकल मुझे चोद कर अभी निकले ही थे, मैंने वाशरूम में अपनी गांड की सफाई की, लेकिन बैडशीट अस्त-व्यस्त थी, बदन पर सिर्फ नाम की एक फ्रेंची थी, वो भी काले रंग की जिसमें मेरा गोरा जिस्म और आकर्षक दिख रहा था।
चूतड़ों पर भी फ्रेंची आधी चिपकी थी और बाक़ी गांड के चीर में फँसी थी। सोचा कुछ देर लेटकर अंकल से हुई चुदाई को याद करके आनन्द लिया जाए फिर उठ कर खाना खाने चलूँ।

अंकल मुझे चोद कर अभी निकले ही थे, मैंने वाशरूम में अपनी गांड की सफाई की, लेकिन बैडशीट अस्त-व्यस्त थी, बदन पर सिर्फ नाम की एक फ्रेंची थी, वो भी काले रंग की जिसमें मेरा गोरा जिस्म और आकर्षक दिख रहा था।
चूतड़ों पर भी फ्रेंची आधी चिपकी थी और बाक़ी गांड के चीर में फँसी थी। सोचा कुछ देर लेटकर अंकल से हुई चुदाई को याद करके आनन्द लिया जाए फिर उठ कर खाना खाने चलूँ।
मुझे उल्टा लेटने की आदत है, नींद भी इसी तरह से आती है। दूसरा घोड़ी बन-बन कर मुझे अब उल्टा होना पसंद था.. हा हा ह..! सोचते-सोचते थकान से मुझे नींद आ गई और कुछ देर बाद प्रसाद मेरे कमरे में आ गया।
हुआ यह कि मैं भूल गया था कि ऑफिस में उसने कहा था कि खाना खाने एक साथ चला करेंगे।
क्यूंकि मेरा घर रास्ते में था इस लिए प्रसाद मेरे यहाँ ही आ गया।
मैंने रात के सिवाए कभी भी दरवाज़ा अन्दर से लॉक नहीं किया था।
उसने एक-दो बार खटखटकाया होगा, पर नींद की वजह से मुझे नहीं सुनाई दिया।
उसने शायद हल्का सा धकेला होगा खुलने से वो अन्दर भी आ गया।
अब मुझे यह नहीं मालूम था कि वो कितनी देर पहले वहाँ आया होगा, क्यूंकि जिस तरीके से मैं लेटा हुआ था उसे देख कर तो औरत तक की चूत में खुजली होने लगेगी, प्रसाद तो फिर भी एक धाकड़ मर्द था।
मुझे वो बेइंतहा पसंद था।
उसके रूम में एक दिन मैं उसका लंड देख चुका था, उसका चौड़ा सीना देख चुका था।
उसने बैड के करीब आकर आवाज़ लगाई एक-दो बार उसने आवाज़ दी तो मेरी नींद खुली।
मैं एकदम सीधा हो गया। मेरे लड़की जैसे गोरे चिकने मम्मों पर मानो उसकी नज़र गड़ गई थी।
बोला- लगता है आराम कर रहे थे..! खाना खाने जा रहा था, सोचा तुझे भी लेता जाऊँ।
“ओह.. तुमने कहा तो था.. लेकिन मेरे दिमाग से निकल गई।”
अब मैंने भी शर्म त्याग दी, उसकी तरफ गांड कर के आराम से खड़ा हुआ।
मैंने अलमारी से टी-शर्ट निकाली और पीछे हाथ ले जाकर फ्रेंची को चूतड़ों की दरार से निकाला और बरमूडा पहना, चप्पल पहनी और बोला- यहाँ तो काफी खुले-डुले बिना टेंशन रहते होगे किसी का आना-जाना नहीं.. जैसे मर्ज़ी कपड़ों में लेटो.. ख़ास करके गर्मी के दिनों में..!
मैंने उसके दिल में चिंगारी लगा दी थी, उसने मुझे लगभग नंगा देख लिया था, नाज़ुक बदन देख लिया था, शायद वो भी रात को मुठ मारता ही मारता।
ढाबे पर गए, खाना खाया था कि वहाँ मेरा पहला आशिक मिल गया।
जालंधर जाने के बाद सबसे पहला आशिक।
बोला- सनी, तुझसे बहुत ज़रूरी बात करनी थी, यहाँ ही मिल गया वैसे मैं थोड़ी देर तक तेरे पास आता, एक मिनट सुनना।
मैंने प्रसाद से कहा- अभी आया यार..।
ढाबे के पीछे अँधेरे में लेजा कर वो मुझे चूमने लगा।
“क्या बात करनी है..!”
“साले मादरचोद तेरे बिना यह लंड मरे जा रहा था..!”
“तुमने खुद ही मुझे छोड़ा था।”
“सॉरी जान.. और क्या काम होगा अभी तो मेरी मुठ ही मार दे हाय.. चिकने..!”
उसने अपना लंड निकाला और मुझसे चुसवाया, लेकिन मैंने कहा- देख कमरे में आ जाना।
वापिसी में प्रसाद मुझे रूम तक छोड़ कर आगे निकल गया और थोड़ी देर बाद मेरा आशिक आ गया और मुझे ठोक डाला।
“हाय.. राजा आज डबल धमाका हो गया। पहले अंकल ने चोदा वो भी आज पागलपन वाले मूड में थे और अब तुम भी वैसे मूड में मिल गए।”
“वो जिसके साथ ढाबे में बैठा था, लगता है नया आशिक मिल गया..?”
“नहीं..यार .. वो मेरे सहकर्मी हैं, एक साथ काम करते हैं।”
“तो साले अलग-अलग रहते हो..! एक साथ रहा करो एक पैसे की बचत दूसरा तुझे पति भी मिल जाएगा.. तेरे सर का साया तेरी गांड का साया..!”
“तुम भी न.. अब जाओ..!”
उस रात मुझे खुलकर नींद आई, हल्का जो होकर सोया था।
उसकी प्रसाद के साथ रहने वाली बात मेरे दिमाग में बैठ गई। सोचा कल ही उसके सामने प्रस्ताव रखूँगा। अभी मुझे उसके साथ ये बात करनी ही थी कि वो मुझसे पहले ही यही बात सोच चुका था।
बोला- सनी यार अलग-अलग किराया देते हैं.. एक साथ ही रहते हैं ना..! एक साथ रहेंगे चूल्हा और सिलेंडर का इंतजाम कर लेंगे। मिल कर खाना बना कर खाया करेंगे।
“बात तो आपकी सही है.. वैसे मैंने भी सोचा था, लेकिन आपने पहले ही कह दिया। अकेले बोर भी होता रहता हूँ, मजे से रहेंगे।
मुझे अब यकीन हो गया था कि प्रसाद ने उस दिन मुझे जिस अवस्था में देखा था उस दिन से शायद वो मेरा दीवाना हो चुका था।
मैं चाहता था कि पहल उसकी तरफ से हो।
मैं जानता था कि मैं कुछ न कह कर भी ऐसी परिस्थिति पैदा किया करूँगा कि उसको मुझे एक दिन मसलना ही मसलना पड़े।
कहानी जारी रहेगी।

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