Desi Gay Sex Story: दिल्ली की नौकरी : 3

Desi Gay Sex Story: दिल्ली की नौकरी : 3

Desi Gay Sex Story: हेलो दोस्तों, जैसा के आप सब जानते ही हो के मेरा नाम आशु है, , में हरियाणा के यमुना नगर का रहने वाला हू….!! आप सबने पिछली कहानी दिल्ली की नौकरी: पुरानी यादें: 2 में पढ़ा के कैसे मुझे दिल्ली जैसे शहर मैं एक नौकरी मिल गई, और कमरा भी.. हालाँकि सब कुछ ठीक चल रहा था के अच्चानक विनोद और प्रदीप के इस वाकये ने मुझे अपनी प्यास शांत करने का मौका बनाने पर मज़बूर कर दिया था. अब आगे का किस्सा पढ़िए

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शो समाप्त हो गया था सो मैं धीरे से वहाँ से हट गया । मैं अपने कमरे मैं वापिस आ गया । दोनो के शरीर मेरे मन में बस गये थे। मैंने फ़ैसला किया कि चूँकि विनोद यहीं रहता है, इसलिये उसे पटाना ज्यादा सरल है, फिर प्रदीप से तो वैसे भी सब कुछ हो ही चूका… कहीं वो मुझे गलत न समझने लगे । यही सोच मैं सो गया । दूसरे दिन विनोदकहीं बाहर से घूम कर आया तो मैंने उसे अपने प्लान के हिसाब से रोक लिया।

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“विनोद अभी क्या कर रहे हो…? मुझे तुमसे कुछ काम है…।” मैंने कहा ,

“तुम ऊपर आ जाओ… खाना खाते हुए बात करेंगे…!” कह कर वो ऊपर चला गया . मैं भी ऊपर आ गया … उसका टिफ़िन आ गया था। उसने खाना थाली में लगा दिया और बैठ गया ।

“हां बोल… क्या बात है…?”

“यार मुझे मैथमेटिक्स पढ़ा दे… तेरी तो अच्छी है ना मैथमेटिक्स…” “तुझे तो पता है के में टेस्ट्स की तैयारी कर रहा हूं…” मैंने अपना बहाना बनाया

ठीक है, ऑफिस से कल वापिस आएंगे फिर डिसकस करते हैं के मेरे बस का है भी या नहीं …” ये कह कर वो खाना खाने में मशगूल हो गया.. उसे शायद इस बात की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी के में क्या चाहता हूं!!

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रोज़ाना की तरह उसके साथ ऑफिस रवाना हो गया । ऑफिस से आने के बाद मैं विनोद के दिए वक़्त का का इन्तज़ार करने लगा । कुछ देर बाद ही मैं बुक्स ले कर ऊपर उसके कमरे में आ गया ।

उसने किताब खोली और कुर्सी पर बैठ गया, उसकी बगल में मैं भी कुर्सी लगा कर बैठ गया । मेरा इरादा पढ़ने का नहीं था… उसे पटाना था। मैंने धीरे से उसके पाँव पर पाँव रख दिया। फिर हटा दिया। वह थोड़ा सा चौंका… पर फिर सहज हो गया। कुछ देर बाद मैंने फिर पाँव मारा… उसने इस बार जान कर कुछ नहीं किया। मेरी हिम्मत बढ़ी… मैंने उसका पाँव दबाया।।

विनोदने मुझे देखा… मैं मुस्करा दिया । उसकी बाँछें खिल उठी। उसने भी एक कदम आगे बढ़ाया। उसने अपना दूसरा पाँव मेरे पाँव पर रगड़ा। मैंने शान्त रह कर उसे और आगे का निमंत्रण दिया। उसने मुझे फिर से देखा… मैंने फिर मुस्करा दिया।

अचानक वो बोला,” आशु… तुम बहुत सही लड़के हो …” “क्या… कह रहे हो… अच्छे तो तुम भी हो…” मैंने उसे काँपते होठों से कहा। वो शायद इशारा भी समझ गया था और वैसे भी उसे मेरे और प्रदीप के बीच क्या हुआ वो सब तो पता ही था… उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपनी ओर खींचा। मैं जान करके उसके ऊपर गिर सा पड़ा। उसने तुरन्त मौके का फ़ायदा उठाया। और मेरी गाँड दबा दीं।

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हम दोनों अब उसके पलंग पर बैठे थे। मैंने ज़रा भी वक़्त बर्बाद करना ठीक नहीं समझा। मैंने उसे अपनी बाँहों में ले लिया। मैंने उसे चूमना शुरू कर दिया। चूमते-चूमते हम दोनों बिस्तर पर लेट गए। विनोद मेरे ऊपर लेट गया और मेरे होंठ चूसने लगा। मैं चुपचाप अपने होंठ चुसवा रहा था- फिर उसने मेरी गर्दन चूमनी शुरू की, चूमते चूमते टीशर्ट उतार फेंकी और उसकी चिकनी छाती को मैं जीभ से चाटने लगा। वो शिथिल पड़ा मेरे बाल सहला रहा था।

मैंने अब अपने कपड़े उतारने शुरू किये, सिर्फ जांघिया रहने दिया। विनोद ने मुझे चूमना शुरू कर दिया। फिर उसने मेरी बाक्सर भी खींचनी शुरू की। मैंने अपनी टांगे उठा दीं जिससे उतारने में आसानी हो। विनोद ने मेरी बौक्सर शार्ट्स उतार फेंकी, लेकिन मेरी टांगों को उठा ही रहने दिया और मेरी मुलायम गाण्ड का रुख किया। मेरी गांड किसी भी स्वस्थ जवान लड़के की तरह विशाल है और उस पर बाल भी हैं.. विनोद को शायद ऐसी ही गांड पसंद है।

“हा..आअ.। अह्ह्ह…!!!”

विनोद ने मेरी गांड के छेद के आसपास के हिस्से को अपनी जीभ से हल्के हल्के सहलाना शुरू किया तो मेरी सिसकारी निकल गई। मैं उसी तरह अपनी टांगें उठाये था और विनोद ने अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ फैला दिए।

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तभी शायद विनोद के में पोज़ बदलने का विचार आया, और उसने मुझे घोड़ा बना दिया, मैंने यह पोज़ एक ब्लू फिल्म में देखा था- उसमें लड़का लड़की को घोड़ी बना कर पीछे से उसकी चूत चाटता है। लेकिन यह पोज़ विनोद अब मुझ पर आज़मा रहा था।

विनोद ने फिर से दोनों हाथों से मेरे चूतड़ फैला कर अपनी जीभ लपलपाकर मेरी गाण्ड चाटनी शुरू की.. मुझे मज़ा आने लगा। मैं इसी स्वाद के लिए तड़प रहा था। उसकी जीभ मेरी गाण्ड के मुहाने के निचले कोने पर हरकत करती, फिर लपलपाती हुई ऊपर तक चली जाती।

मैं किसी बकरे की तरह कराह रहा था जिसे हलाल किया जा रहा हो। फर्क सिर्फ इतना था कि मेरा कराहना मस्ती भरा था-अहह.. अहह.. आआह्ह्ह…! अहह.. आआह्ह.. उह्ह… !

अब विनोद पूरी मस्ती से मेरी गाण्ड को चाट रहा था। उसके थूक से मेरी गांड का छेद भीग गया था। उसकी जीभ लिप-लिप की आवाज़ करती हुई मेरी गांड के मुलायम होटों को सहला रही थी।

विनोद बीच बीच में मेरी गोलियों और गांड के बीच के भाग को भी चाट लेता था। ऐसे में मेरे मुँह से एक नई सिसकारी निकल जाती, “उफ़…हह..!”

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मैं शायद विनोद और उसके दिए हुए मज़े में इतना खो गया था के एक ब्लू फिल्म की लड़की की तरह बर्ताव कर रहा था- बिल्कुल ऐसे छटपटा रहा था जैसे ब्लू फिल्म में लड़कियाँ चूत चटवाते हुए छटपटाती हैं। मेरा तड़पना-छटपटाना उसके मज़े को दोगुना कर रहा था। वो करीब 15 मिनट तक मेरी गांड थामे उसे चाटता रहा। फिर उसका मन शायद अब लंड चुसवाने का करने लगा। … कहानी जारी रहेगी….!!

अभी मैं हरियाणा के यमुना नगर जिले में हूं. आपके पत्रों का इंतज़ार मुझे [email protected] पर रहेगा

आपका आशु

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