Hindi Gay sex story – गे रेप स्टोरी – भाग १

क़रीब 10 साल पहले की बात रही होगी। दीपक मुझे एक मंदिर में मिला था जहाँ मैं ऑफ़ कोर्स भगवान के दर्शन करने गया था, पर भगवान के बंदों का दर्शन करना तो मेरा बोनस था। जब मेरी नज़र दीपक पर पड़ी थी तो मुझे लगा कि भगवान ने मेरी प्रार्थना क़ुबूल कर ली और इस मस्त-मस्त लड़के को मेरे लिए भेज दिया। 18 का होगा, रंग गोरा, क़द औसत करीब 5’5” होगा, बॉडी हल्क जैसे गंठीली, जैसी सुनील शेट्टी की, डोले-शोले-सीना कसी शर्ट से उभरे हुए दिख रहे थे। चेहरे पर ऐसी मासूमियत जो कह रही थी कि मैं अनछुआ हूँ।

उससे बात की, दोस्ती की। पास के छोटे शहर के पास के किसी और छोटे कस्बे से था, जहाँ से बारहवीं पास करने के बाद वो और उसके दो दोस्त आ कर यहाँ इंजीनियरिंग की कोचिंग कर रहे थे। वो पैदल था, इसलिए मेरी बाइक पर घर छोड़ देने की पेशक़श में उसको सहूलियत लगी। हम चले, रास्ते में एक दुकान पर रुक कर चाय नाश्ता किया, फिर बोला कि मेरा रुम देख ले, कभी टाइम हो, बोर हो रहा हो तो मिलने आते रहना। वो झिझका लेकिन न नहीं कर पाया। हम मेरे फ़्लैट पहुँचे। कोल्ड ड्रिन्क की बोतल ला के रखी। टी वी लगाया। मैं सोफ़े पर उसके बगल में बैठा। छोटे-मोटे जोक मारे। उससे मज़ाक़ में लिपटना शुरु किया, और फिर इस अवधि को बढ़ाता गया। उसको छुआ। इधर-उधर। उसने नहीं रोका। मेरी हिम्मत बढ़ी।

लेकिन वो भगवान का प्रसाद नहीं निकला मेरे लिए। भगवान शायद मेरे मज़े ले रहे थे। थोड़ी देर में मैं उसके गालों को चूम चुका था, उसके पूरे बदन को छू चुका था। पैंट के ऊपर से उसके लंड को छू और दबा चुका था, लेकिन उस पर कोई भी कैसा भी असर नहीं हुआ। न हाँ, न ना। उसकी पैंट की ज़िप खोल कर उँगलियाँ अंदर डाल के उसके लंड को कुछ देर तक सहलाया भी, पहले अंडीज़ के ऊपर से, और फिर अंडीज़ के अंदर हाथ डाल के, और फिर अंडीज़ से बाहर निकाल कर भी। लेकिन लंड शायद और सिकुड़ गया। वो चुपचाप टीवी पर नज़रे गड़ाए हुए कोल्ड ड्रिन्क पी रहा था, जैसे ये सब उसके साथ नहीं हो रहा है।

कुछ देर में मुझे लग गया कि कोई फ़ायदा नहीं है। और मैंने उसकी पैंट की ज़िप बंद कर दी। और उससे थोड़ा दूर हट के बैठ गया। उससे सॉरी भी बोला। जिसका उसने कोई नोटिस नहीं लिया। लेकिन उसने बुरा भी नहीं माना था। बात-चीत जारी रही। फिर कोल्ड ड्रिन्क ख़त्म होने पर मैं उसको उसके रूम ड्रॉप करने गया। आम लड़के तो दूर की सड़क पर ही उतर जाते हैं और कहते हैं क्यों तक़लीफ़ करते हैं भइया, मैं चला जाऊँगा। लेकिन वो बाक़ायदा मुझे अपने रूम ले गया। पार्टनरों से मुलाक़ात हुई। कुछ देर बात करके, उनको कभी-कभी आते रहने का न्योता देकर मैं वापस चला गया।

वो आए। कई बार। दीपक को तो मैंने उसके बाद कभी हाथ भी नहीं लगाया। वो भी जैसे मेरी उस हरक़त को भूल गया था। उसके पार्टनर अनिल और पवन दोनों ही उसी की तरह गोरे थे, लेकिन दुबले थे। बढ़ते बचपन का दुबलापन, जिसमें उनकी 18 साल की नई जवानी की चमक थी। पवन ज़रा-ज़रा सी बात पर ग़ुस्सा हो जाने वाला था। ये बात मुझे चैलेंजिंग लगती है, जैसे बिगड़े घोड़े पर लगाम कसने का चैलेन्ज। मैं उसके साथ जोक मारता, लेग पुलिंग करता, अक्सर वो ग़ुस्सा हो जाता। मैं उसको मनाने के नाम पर उससे लिपट जाता, कहीं-कहीं किस करता, कहीं-कहीं गुदगुदी करता। सबके सामने। किसी ने नोटिस नहीं लिया। दीपक ने मेरी हरक़त के बारे में उनको वॉर्न नहीं किया था। मेरा पवन को लेकर ख़ुमार बढ़ता जा रहा था।

और फिर एक दिन जब वो आए, तो मैंने कुछ नाश्ता लाने के लिए दीपक और अनिल को बाहर भेज दिया। अब मैं और पवन अकेले थे। और मैंने फ़टाक से जोक मारना, उसको ग़ुस्सा करना, उसको मनाने के लिए चूमना, गुदगुदी करना, छूना, लिपटाना शुरु किया। वो झटपटा रहा था। हमेशा की तरह दूर होने की क़ोशिश कर रहा था। और फिर तो मैंने उसको सोफ़े पर लिटा ही लिया और उसकी जीन्स के ऊपर से उसके लंड को चूमने लगा, और फिर उसकी बैल्ट और जीन्स के बटन और ज़िप खोल दिए और उसकी अंडीज़ के ऊपर से उसके लंड को चूमने लगा। वो झटपटा रहा था। और फिर उसके रोने की आवाज़ आई। मैं चौंक गया। मैंने उसे छोड़ा, उसकी जीन्स के बटन बंद किए, ज़िप चढ़ाई बैल्ट चढ़ाई। उसका रोना बंद हो गया था। नहीं, आँसू नहीं निकले थे, वो रोने की बस आवाज़ निकाल रहा था। मेरे दूर होते ही वो आराम से बैठ गया जैसे ये उसकी दूर होने की चाल थी। मैंने सॉरी बोला, उसने कोई नोटिस नहीं लिया। मैंने कोल्ड ड्रिन्क की बोतल मेज़ से उठा कर उसे दी, उसने पकड़ ली और पीने लगा और टीवी देखने लगा।

दरवाज़ा खटखटाया गया, वो दोनों नाश्ता ले कर आ गए थे। हम सबने नाश्ता किया। मैं घबरा रहा था कि पवन कुछ बोलेगा। लेकिन उसने कुछ नहीं बोला, और कुछ देर में हमेशा की तरह बातचीत, हँसी-मज़ाक़ शुरु हो गया, बस अब मैंने पवन को छूने की कोई क़ोशिश नहीं की। फिर वो चले गए। और उसके बाद कई बार आए। पवन ने किसी को कुछ नहीं बताया था।

मैंने अपनी गधे के लंड से लिखी क़िस्मत को कोसा कि क्या तीन जवान अनछुए लड़को के इतना पास रहने के बाद भी कुछ नहीं हो पाया। अनिल मेरी पसंद का बिल्कुल नहीं था, लंबा क़द 5’8” का, गोरा रंग, बहुत दुबला, छोटे घुँघराले बाल, स्टील के फ़्रेम का पतला चश्मा, वो देखते ही ऐसा पढ़ने-लिखने वाला, साइंटिस्ट जैसा लड़का लगता था कि ख़ुद ही लग जाता था कि इसके साथ कुछ नहीं होने वाला। मैंने उसको कभी छुआ भी नहीं।

फिर उनका साल पूरा हुआ, उन्होंने कम्पटीशन दिए और फिर शहर छोड़ कर अपने घर वापस चले गए। तब सेल भी नहीं थे। लैंडलाइन नंबर अदला-बदली किए थे। एक दो बार बात भी हुई, लेकिन फिर उनके घरों से कोई उठा लेता था और फिर सवाल शुरु होते थे कि कौन हो, कैसे जानते हो, तो मैंने रिंग करना बंद किया, उन्होंने कुछ बार लगाया, लेकिन फ़िर सब बंद हो गया। मैंने फिर ख़ुद को कोसा कि क्या मस्त माल हाथ से सूखे-सूखे निकल गए।

लेकिन फिर एक दिन अनिल का फ़ोन आया। उसका सिलेक्शन हो गया था, और वो काउन्सलिंग के लिए यहाँ आ रहा था। उसने बताया कि दीपक और पवन का सिलेक्शन नहीं होने के साथ ही इतने कम नंबर आए थे कि उनके घरवालों ने उनकी पढ़ाई बंद करवा के उनको घर के धंधे में बिठा दिया था। मैंने फिर अपनी क़िस्मत को कोसा कि वो दोनों साले मस्त लड़के अब कभी मिलने वाले नहीं थे और आ रहा था तो ये अनिल जिसको देख कर तो टन्नाया लंड भी बैठ जाएगा। ख़ैर, मैंने उसको बहुत-बहुत मुबारकबाद दी, और बोला कि यहाँ आ रहा है तो मेरे यहाँ ही रह ना। उसने वैसे तो इसीलिए फ़ोन किया था, लेकिन उसने दो तीन बार “नहीं” “आपको दिक़्क़त होगी” वगैरह बोलने के बाद मेरी पेशक़श मज़बूरी में क़ुबूल की और आने का प्रॉमिस किया। मैंने भगवान से दुआ की कि इसके साथ तो कुछ होना नहीं है, काश, इसको यहीं शहर का कोई कॉलेज मिले तो इसके साथ इसका कोई नया दोस्त आए जिसके साथ कुछ हो.

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